Krishnachander का लेखक परिचय : कृश्नचंदर ( Krishnachander ) का लेखक परिचय, रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान नीचे दिया गया है।
कृश्नचंदर का लेखक परिचय | Krishnachander ka lekhak Parichay In Hindi
जीवन-परिचय-
हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक तथा पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार कुश्नचंदर कालूमानाची नवम्बर 1914 को पाकिस्तान के गुजरांकला जिले के वजीराबाद में हुआ था। सलमा सिद्दिकी उनकी पत्नी थीं। इनकी प्राथमिक शिक्षा पुजिले के एवं कश्मीर) में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे सन् 1930 में लाहौर आ गए और फारमम किश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया। 1934 में पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में एम. ए. किया। बाद में उनका जुड़ाव फिल्म जगत से हो गया और वे अन्तिम समय तक बम्बई में रहे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन् 1969 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मनित किया गया था। 8 मार्च 1977 को मुम्बई में उनका निधन हो गया। साहित्य सेवा-यों तो कृश्नचंदर ने उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज, लेख व पटकथा भी लिखी हैं। किन्तु उनकी पहचान एक कहानीकार के रूप में की जाती है। इन्होंने लगभग 80 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से 20 उपन्यास और 30 कथा-संग्रह उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हो चुके थे। वे हिंदी व उर्दू दोनों भाषाओं में लिखते थे।
रचनाएँ-
कृश्नचंदर ने गद्य-साहित्य की प्रत्येक विधा को अपना कर साहित्य जगत के आँचल को भर दिया है।
(क) कहानियाँ – ‘ अजनबी आँखें’, ‘अन्नदाता’, ‘अमृतसर आजादी से पहले’, ‘आधे घण्टे का खुदा’, ‘एक तबाइफ का खत’, ‘कचराबाबा खिड़कियाँ’, ‘जामुन का पेड़’, ‘थाली का बैगन’, ‘दानी’, ‘दो फर्लांग लम्बी सड़कें’, ‘पुराने खुदा’, ‘पूरे चाँद की रात’, ‘ममता’, ‘महालक्ष्मी का पुल’, ‘शहजादा’, ‘सौ रुपये’ आदि।
(ख) कहानी संग्रह-‘एक गिरजा-ए-खंदक’, ‘यूकेलिप्टस की डाली’।
(ग) उपन्यास – ‘एक गधे की आत्मकथा’, ‘एक वायलिन समंदर के किनारे’, ‘एक गधा नेफा में’, ‘तूफान की कलियाँ’, ‘कारनीवाल’, ‘गद्दार’, ‘सपनों का कैदी’, ‘सफेद फूल’, ‘पिआस’, ‘यादों के चिनार’, ‘मिट्टी के सनम’, ‘रेत का महल’, ‘कागज की नाव’, ‘चाँदी का घाव’, ‘दिल’, ‘दौलत और दुनिया’, ‘पियासी धरती’, ‘पिआसे लोक’, ‘पराजय’, ‘शिकस्त’, ‘जरगाँव की डाली’, ‘सड़क वापस जाती है’, ‘आसमान रोशन है’, ‘हम वहशी हैं’, ‘जब खेत जागे’, ‘बावन पत्ते’।
(घ) चित्रपट- लेखन (मूवी) ‘धरती के लाल’, ‘आन्दोलन’, ‘शराफत’, ‘ममता’, ‘माँ भूमि’, ‘मनचली’, ‘रामभरोसे’ आदि।
वर्ण्य-विषय- प्रेमचंद के बाद कृश्नचंदर ने ही कहानी विधा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध उनके मन में क्रोध था तो सर्वहारा वर्ग के लिए लिखने वाले थे। आधुनिक सामाजिक स्थिति में वर्गों की विभिन्नता, जनता की आर्थिक दुर्दशा, प्रबन्धकों के अत्याचार और पूँजीपतियों की लूटमार देखकर उनका कलम विष में डूबकर चलता है। अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना उनका वर्ण्य-विषय था।
भाषा–
कृश्नचंदर ने अपना लेखन कार्य उर्दू भाषा से शुरू किया था। भारत के स्वतंत्र होने पर उन्होंने हिंदी भाषा में लिखना आरम्भ किया। आपकी भाषा साधारण बोलचाल की खड़ी बोली है जिसमें सरलता, सुबोधता और सजीवता है। उनका शब्द चयन चमत्कारिक है। भाव, प्रसंग और विषय के अनुरूप तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी के साथ अंग्रेजी शब्दों का बाहुल्य है। भाषा में हास्य व व्यंग्य का भी पुट है। छोटे-छोटे वाक्य गहरी अर्थ व्यंजना के कारण बड़ी तीखी चोट करते हैं।
शैली–
कृश्तचंदर जी की शैली निम्नलिखित प्रकार की है-
वर्णनात्मक शैली- आपने अपने पात्रों व घटनाओं के लिए इसी शैली का प्रयोग किया है।
हास्य व्यंग्यात्मक शैली- लेखक ने घटनाओं को अतिश्योक्तिपूर्ण और अविश्वसनीय ढंग से फैला-फलाकर दिखाया है तथा लालफीताशाही पर व्यंग्य का छौंक लगाया है जिस कारण घटनाएँ हास्यास्पद लगती हैं।
संवादात्मक शैली – कथावस्तु को स्पष्ट करने तथा कथानक को आगे बढ़ाने तथा पात्रों के चरित्र की विशेषता को बताने के लिए आपने संवाद शैली का प्रयोग किया है।
मनोवैज्ञानिक शैली -आपने स्वतंत्रता के बाद हिंदी में लिखना शुरू किया था। अतः उस समय के पात्रों के हृदय में उठने वाले विचार तथा द्वन्द्वों का जिसमें नारी हृदय का मनोवैज्ञानिक द्वन्द्व का सफलतापूर्वक वर्णन किया है। इस प्रकार आपकी शैली में विविधता देखने को मिलती है।
साहित्य में स्थान –
कृश्नचंदर कथाकार के रूप में सदैव याद रखे जाएँगे। आपने सामाजिक विषमताओं और आधुनिक भारतीय समाज के यथार्थ रूप को अनावृत्त किया है। फिल्म जगत भी उन्हें सदैव याद रखेगा। आपने 80 पुस्तकों की रचना करके हिंदी साहित्य जगत को धनी बनाया है। उनके सम्मान में भारत सरकार ने ₹10 का एक डाक टिकट भी निकाला और उन्हें प्रतिष्ठित पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया।
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