बालमुकुंद गुप्त – Balmukund Gupta का लेखक परिचय, रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान

 Balmukund Gupta का लेखक परिचय :   बालमुकुंद गुप्त (Balmukund Gupta) का लेखक परिचय,  रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान नीचे दिया गया है।

Balmukund Gupta का लेखक परिचय, रचनाएं, भाषा - शैली और साहित्य में स्थान

बालमुकुंद गुप्त  का लेखक परिचय | Balmukund Guptaka lekhak Parichay In Hindi

 

रचनाएँ-

(क) सम्पादन- ‘ हिंदी-हिन्दुस्तान’, ‘हिंदी बंगवासी’, ‘भारत मित्र पत्र’।

(ख) अनुवासद-  ‘ रत्नावली की नाटिका’, ‘हरिदास और मण्डल भगिनी’।

(ग) कविता संग्रह- ‘ स्फुट कविता’।

(घ) निबन्ध – ‘शिव शंभु के चिट्ठे’, ‘चिट्ठे और खत’, ‘खेल तमाशा’।

(ङ) अन्य कृतियाँ-  ‘ उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी’, ‘अखबार-ए-चुनार’, ‘खिलौना’, ‘सन्निपात चिकित्सा’, ‘भारत-प्रताप’, ‘अखबार’, ‘अवधपंच’, ‘कोहिनूर’ और ‘विक्टोरिया’ प्रसिद्ध लेख हैं। उनकी समस्त रचनाएँ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्यंग्यात्मक रूप में लिखी गई हैं।

भाषा

बालमुकुंद गुप्त की भाषा में निर्भीकता के साथ व्यंग्य-विनोद का भी पुट था। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। आपकी भाषा में दुरूहता का दोष कभी नहीं आता बल्कि भाषा की स्पष्टता, सुबोधता और सरलता आपके हर वाक्य में दिखाई देती है। भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए ‘कान न देना’, ‘आँखें बंद करके बैठना’ जैसे मुहावरों का प्रयोग किया गया है। भाषा में ओज व व्यंग्य भरपूर है।

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शैली

बालमुकुंद गुप्त जी की शैली व्यवस्थित तथा सजीव है। उनमें जटिलता न होकर प्रवाह है। शैली के निम्नलिखित रूप हैं-

  1. व्यंग्यात्मक शैली – बालमुकुंद गुप्त की सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य कृति ‘शिव शंभु के चिट्ठे’ है जिसमें भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है।
  2. मुहावरेदार शैली – आपने रचनाओं में भावों की अभिव्यक्ति के लिए मुहावरों का उचित प्रयोग किया है।
  3. उद्धरण शैली – बालमुकुंद गुप्त ने उदाहरणों के माध्यम से घटनाओं को स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है, जैसे- विदाई के पलों का महत्व बताने के लिये शिव-शंभु की दो गायों का उदाहरण दिया।
  4. संबोधन शैली-कथानक के वार्तालाप को सजीव बनाने के लिए सम्बोधन शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है।

साहित्य में स्थान –

बालमुकुंद गुप्त को एक सच्चे देशभक्त के रूप में सदा याद रखा जाएगा। आपने साहित्य के माध्यम से भारतीयों में स्वाधीनता की चिंगारी रख दी तथा इसी प्रयास में हँसते हुए फाँसी पर लटक गए। उनका सम्पूर्ण साहित्य विदेशी शासन की क्रूरता तथा भारत की पराधीनता के विरुद्ध जिहाद की नींव पर खड़ा है। ऐसे साहित्य व साहित्यकार को सदैव याद रखा जाएगा।

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