Munshi Premchand का लेखक परिचय : मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) का लेखक परिचय, रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान नीचे दिया गया है।
मुंशी प्रेमचंद का लेखक परिचय | Munshi Premchandka lekhak Parichay In Hindi
जीवन परिचय –
कथा-साहित्य के शिखर पुरुष उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। आपका मूल नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायब राय लमही में डाक मुंशी थे। उनकी शिक्षा का आरम्भ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवन-यापन का अध्यापन से। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक बने। 1910 में इण्टर तथा 1919 में बी. ए. पास करके शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर बने। सात वर्ष की अवस्था में माँ तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो गया।
1910 में धनपत राय के नाम से ‘सोजे-वतन’ राष्ट्र प्रेम और क्रान्तिकारी भावों से पूर्ण कहानी संग्रह लिखा, जिसे हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने जब्त कर नष्ट कर दिया। तब सन् 1915 में महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर ‘प्रेमचंद’ के नाम से लेखन कार्य शुरू किया। जीवन के अन्तिम दिनों में वे गम्भीर रूप से बीमार पड़े। 8 अक्टूबर 1936 में उनका निधन हो गया। उनका अन्तिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया। साहित्य सेवा-आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरम्भ 1901 से हो चुका था। उन्होंने उपन्यास, नाटक, जीवन-चरित्र, निबन्ध, अनुदित रचनाएँ लिखकर हिंदी साहित्य के भण्डार को भर दिया। ‘गबन’ व ‘गोदान’ उपन्यासों पर फिल्म भी तैयार की गई।
रचनाएँ-
प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, जीवन-चरित्र, निबन्ध तथा सम्पादन के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
(क) उपन्यास ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘निर्मला’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘प्रेमाश्रय’, ‘वरदान’ ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘गबन’, ‘गोदान’ और ‘मंगलसूत्र’ (अपूर्ण)।
(ख) कहानी संग्रह- ‘पंचपरमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘नमक का दारोगा’, ‘मंत्र’ पूस की रात’, ‘सोजे वतन’, ‘कफन’, ‘मानसरोवर’ (8 भाग) आदि।
(ग) नाटक ‘कर्बला’, ‘प्रेम की वेदी’, ‘संग्राम और रूठी रानी
(घ) जीवन चरित्र ‘कलम’, ‘तलवार और त्याग’, ‘दुर्गादास और रामचर्चा’।
(ङ) निबन्ध संग्रह-‘कुछ विचार’, ‘विविध प्रसंग’।
(च) सम्पादन- ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’, ‘हंस’, ‘जागरण’ साप्ताहिक पत्र।
(छ) अनूदित ‘अहंकार’, ‘सुखदास’, ‘आजाद कथा’, ‘चाँदी की डिबिया’ ‘टॉलस्टाय की कहानियाँ’ और ‘सृष्टि का आरम्भ’।
वर्ण्य-विषय-प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद को आरम्भ किया। समाज के उपेक्षित, अपमानित, पतित, किसान, गरीब मजदूर, दहेज प्रथा, बेमेल विवाह आदि उनकी रचनाओं के विषय थे। अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने भारतीय ग्राम्य जीवन व समाज का वर्णन किया है। उनका साहित्य निम्न एवं मध्यम वर्ग की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।
भाषा–
प्रेमचंद की भाषा के दो रूप हैं- एक रूप तो जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, जैसे- ‘तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।’ दूसरा रूप जिसमें उर्दू, संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है, जैसे-पीर का मजार, फुरसत, रोजनामचे । प्रेमचंद की भाषा चुलबली है जिसमें मुहावरों-कहावतों का प्रयोग है।
शैली–
प्रेमचंद बेजोड़ शैली के रचयिता थे-
- वर्णनात्मक शैली – इस शैली का प्रयोग प्रेमचंद ने घटनाओं और पात्रों के चरित्र-चित्रण के वर्णन में किया है जिससे चित्रात्मकता उत्पन्न हो गई है।
- विवेचनात्मक शैली – निबन्धों में गम्भीर विचारों को व्यक्त करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया जिसमें संस्कृतनिष्ठ भाषा मिलती है।
- मनोवैज्ञानिक शैली-मन के भावों तथा पात्रों के मन में उत्पन्न अन्तर्द्वन्द्व चित्रित करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया है। ‘मंत्र’ कहानी में बूढ़े के चरित्र में यह शैली मिलती है।
- हास्य-व्यंग्यात्मक शैली- सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय, आपने इस शैली का प्रयोग किया है, जैसे- रूढ़िवादिता आदि। यह शैली ‘फटे जूते’ कहानी में मिलती है। भावात्मक शैली- मानव जीवन से सम्बन्धित विभिन्न भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। यह शैली ‘निर्मला’ उपन्यास में देखने को मिलती है।
साहित्य में स्थान –
प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने हिंदी साहित्य में युगान्तकारी परिवर्तन किया। उनका साहित्य देशभक्ति और समाज के आगे मशाल दिखाती हुई सच्चाई है। उनके रचनात्मक योगदान के कारण 1918 से 1936 तक के काल को प्रेमचंद युग कहा जाता है। प्रेमचंद रचनात्मक जीवन में साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए हैं, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित ।
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